2012-05-30

खुदा की शनाख्त मुश्किल होगी !

  • क्रिकेट के मैदान के बाहर बैठी  छोटी लड़की  इसलिए दुखी है क्यूंकि उसे कोई क्रिकेट नहीं खेलने देता ,उसके बराबर  में बैठा लड़का वो इसलिए दुखी है क्यूंकि वो तीसरी गेंद पर ही आउट हो गया .वो दुखी है पर लड़की के दुःख में शामिल नहीं है दुःख का  सेंट्रल पॉइंट  बदलता रहता है,   हम  अपने  दुखो के "जूम" करके देखते है.!
  •  मार्क्स ,ओशो,   कबीर या  विवेकानंद    इंटेलेकचुवलटी  में कुछ जोड़  करने वास्ते नहीं है  न कागजी हूनर को तराशने के लिए . वे  रूह की  मरम्मत वास्ते है . आवाज लगाते हुंकारे है जो बरसो से कह रहे है के  दुःख में इंटरफेयर  करो  दूसरो के दुःख में भी  .दुखो का कोलाज़ मुत्तासिर  करता है पर अपने साथ  "एडिक्शन"  का भी खतरा  लाता है .गमो से  मोहब्बत  बड़ी  अजीब शै है   इससे कुछ वक़्त  रोशन  होने का अहसास रहता है  .भीतर रोशन कर " मै "  से मुलाकात का इल्म देती है  पर  उस रोशनी को सब कोनो में फेंकना  लाजिमी  होता है   दूसरे शख्स के अँधेरे कोनो में भी .वो कोने भी जो लौटकर उदासी देंगे ,पर"  मै "  उन्ही  कोनो से  लौटकर  बने  रहने में मुकम्मल होता  है 
रोजो -शब् एक सी नहीं गिरती बस्ती पर
  •  तकलीफों के अपने तयशुदा रास्ते होते है   खुदा तकलीफों के दरमियाँ न कोई हदबंदी करता है न कोई स्पीड ब्रेकर जैसी किसी  चीज़ में यकीन . वो  शायद तकलीफों का बिचोलोया है ऐसा बिचोलिया जो अपने पेशे के लिए  बड़ा  संजीदा  है.तभी कुछ  नस्ले खुरदुरी मिलती है . वैसे इस दुनिया के  सारे साधारण लोग खुरदुरे ही है   .शरीर के निचले हिस्से से बेकार उस १४ साल के लडको को उसका पिता गोद में उठाकर क्लिनिक में लाता है .माथे पर छोटे छोटे दाने है , उनकी डिटेल बतलाते बतलाते वो उसके माथे पर गिर आये उसको बालो को ठीक करता है . लड़का कुछ अस्पष्ट  सा बोलता है .पर पिता में उसकी भाषा को  ट्रांसलेट कर देने  के टूल किसी "शै " ने दे दिए है   .ऐसे पिता याददाश्त को आसानी से नहीं फलांगेगे  .मेमोरी सैल में कई सालो जिंदा रहेगे . शायद ताउम्र ! 
 कुछ मायनों के मुन्तजिर ना रहे
  •  सर से पाँव तक इतनी गर्मी में तीन जिस्म   रिक्शे में   काले कपड़ो में बंधे  जा रहे  है  . कुछ नस्लों में  मज़हब की  " किस्ते '  चुकाने की  संजीदगी  जिद  की तरह कायम है  .   मजहब  "डिटेकटिव सा बिहेव" करता है  .  इसका  मेटाबोलिजम  जुदा किस्म का है  "डायल्यूट"  नहीं होता.    मोबाइल का कैमरा  रिक्शे में बैठी लगभग  तेरह साल की लड़की की आँखों से आँखे मिल जाने पर जाने क्यों शर्मिंदा होकर   अपनी  आँख नीचे कर लेता है .  इस हिस्से में ऐसी तस्वीरो की किल्लत कभी नहीं होगी . बौद्धिकता के  लबादे में  आयातित  कई कम्प्यूटरी सुख है  ! कुछ  दुःख दिखते नहीं ओर कई लोग तो इन्हें दुःख की "टेबुल"   में रखते नहीं .
 ख्वाबो के जहाज आराम करते है
  •  ख्वाहिशो  की कई कतारे है  जो  फ़िक्रो की पाबन्दी के तहत अब तक  एक कदम भी चली नहीं है  नुक्सानात  से बचे रहने की "मिडिल क्लास हिच" की माफिक  ! हर लम्हे की पेशानी पे अलहदा तर्क है   "  गुजरने " से पहले ,   देखो न  नाखुदा  आखिरी किस्त भरने आया है
          " रोज उस नुक्कड़ से
             नुचे हुए दिन को
            हांक के ले जाता है
           वक़्त के गल्ले में !
             क्यों ना
          किसी शब ऐसा करे
           रस्ते से
         अपने अपने खुदा को
        "एक्सचेंज" करे !   " 

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