2008-07-26

हम जीने की हमेशा तैयारी करते है जीते नही ...


जिंदगी में हमारी सबसे बड़ी ग्लानि हमारे द्वारा किये ग़लत काम नही अपितु वे सही काम होते है जो हमने नही किये
- आज सुबह ९.१५ मिनट पर मेरी दोस्त डॉ प्रिया का एस .एम्.एस

कैंसर diagnose होने से तीन महीने पहले का चित्र 

स्ते वैसे ही है बस आस पास ऊँची इमारतों ने सूरज का रास्ता रोक लिया है ... ऐसा लगता है ये शहर अब आसमान से बातें करता है..५ साल बाद उस शहर में आया हूँ जो अब भी मेरी रगों में दौड़ता है पर पाँच साल इस शहर को जैसे अपने साथ आगे ले गये है ..मै ओर जाट अपार्टमेन्ट में गाड़ी पार्क करते है ..दसवे फ्लोर पर घर है ,लिफ्ट तक जाते जाते जाट का मोबाइल बज गया है जिग्नेश का फोन है ...आधे घंटे में पहुँच रहा है.....खाना घर पे खाना है ...वो कहता है ..घंटी बजते ही अंकल दरवाजा खोलते है ..पैर छूने झुकता हूँ तो सीधे गले लगा लेते है .....कुछ सेकेंड तक गले लगा कर रखते है....."अरे आंटी आप तो जरा भी बूढी नही हुई "मै आंटी से पैर छूते हुए कहता हूँ तो वे मुस्कराती है....सोफे पर बैठा हूँ तो दीवार पर नजर जाती है...सामने कृपा की तस्वीर है.....मुस्कराती हुई....

मूमन कम बोलने वाली वो लड़की हमेशा आगे बैठी नोट्स लिखती मिलती या एनाटोमी dissection हॉल में किसी को कुछ समझाती .... ओर छोटी छोटी बातो को खुश होकर बताती ..हमारे ग्रुप में सबसे सीधी ..मेरे गुजराती उच्चारण को .हमेशा ठीक करने की कोशिश करती ओर जाट की हरियाणवी पर अक्सर उलझती ,उसके मासूम से सपनो में से एक सपना अक्सर रहता ....नयूरोलोजिस्ट बनने का जिंदगी मगर कई तह में है धीरे धीरे खुलती है

दो भाई बहनों में बड़ी ,माँ की लाडली ,माँ की आँखों से सारे सपने जैसे उसकी उसकी आँखों में सिमट आते ..छोटी छोटी खुशियों को सहेजती ओर घडा भरती ....मुझे याद है . कॉलेज के function मे DEBATE पर बोलते बोलते वो पहली बार जब ब्लेक आउट हुई थी हमने इसे नर्वस नेस समझ मामूली घटना की तरह नजर अंदाज किया था .,कुछ दिनों बाद उसने जब अपने कंधे मे दर्द की बात की तो हम सभी ने इसे भी हँसी-मजाक मे टाल दिया ......फ़िर सी .टी स्केन...फ़िर biopsy......कागज का एक टुकडा ..
Ewings sarcoma “of scapula १ लाख लोगो मे १ व्यक्ति को होने वाला कैंसर .....पूरा परिवार थम गया ...२० साल की वो लड़की ...रातो रात बदल गयी ....जसलोक हॉस्पिटल जाने से पहले मिली ..कही कोई घबराहट नही ,शांत खामोश ...बस इतना कहा "एक चक्कर लगाना पड़ेगा ब्लड ग्रुप ओ वालो को....मैंने सर हिलाया

बॉम्बे जसलोक हॉस्पिटल .,AMPUTATION ..(..पूरा हाथ काटना) एक आप्शन रखा गया ......पिता जैसे टूट गये थे .माँ खड़ी रही चट्टान की तरह अपनी बेटी के साथ .....कभी पलक गीली नही देखी मैंने ..पिता कई बार फूट पड़ते ....माँ ने ढेरो डॉ से बातें की कभी टाटा ,कभी अहमदाबाद ..ढेरो डॉ से मुलाकाते ...,ढेरो किताबे पढ़ी ...क्या बिना हाथ काटे ऑपरेशन हो सकता है ?हाँ इंग्लेंड के एक डॉ ने कहा ...जसलोक हॉस्पिटल में ऑपरेशन हुआ ...महीनो अस्पताल में रेंगते से गुजरे ...वापस आयी....


chemotherepy के दौरान लिया गया फोटो ( ४ बेस्ट फ्रेंड) 

 chemotherepy का दौर ओर उसके साइड एफ्फेक्ट्स....... पर वो जीवट थी ..विग पहनकर कॉलेज आती अब भी आगे बैठती ,कभी इस मुद्दे पर कोई बात नही ,जब हमारा ग्रुप कैंटीन में खामोश बैठता जाट को छेड़ती"क्यों तुम्हारे हरियाणवी चुटकले ख़त्म हो गये ?जिस दिन उसकी chemothrepy की लास्ट डोज़ हुई ,उसके एक हफ्ते बाद हम सब मिलकर लॉन्ग ड्राइव पर समंदर पे गये ....वहां समंदर के किनारे खड़े होकर उसने फ़िर कहा "देखा मै neurologist बनकर रहूंगी ".......
ऐसा प्रतीत हुआ जैसे गम के साये धीरे धीरे धुंधले पढ़ रहे है ,हम सभी दोस्त फ़िर अपनी अपनी जिंदगी मे मुड़ने लगे ..... लापरवहिया फ़िर सर उठाने लगी ...सपने दुबारा उठ कर खड़े होने लगे ...एक रूटीन सी टी स्केन .....कैंसर शरीर में फ़ैल गया था ....मेटास्टेसिस ..... उस उम्र मे जब जिंदगी दुबारा अच्छी लगने लगे सपने रोज आपके बिस्तर के सिरहाने पड़े मिले ,एक कागज का टुकडा फ़िर आपको इत्तिला दे की आपके सपनो की मियाद इतनी ही थी ....सच जानिये बड़ी बड़ी बाते किताबो मे पढ़ना ,ओर दूसरो को दिलासा देना बेहद आसान है पर ख़ुद उन रास्तों पर गुजरना बेहद मुश्किल....

उसके बाद मुश्किलों के दिन गुजरे ,....याददाश्त खो देना ,कभी हॉस्पिटल ,कभी आई सी यू के चक्कर ,हर रात एक कशमकश ,हर रात उधार की साँसे ......एक साधारहण इन्सान अपनी हठ ओर लगन से कब जिंदगी को इबारत में बदल लेने की ठान ले …कौन जाने ! कही पढ़ी हुई ऐसी बातें जब सामने से गुजरे तो ?
माँ बेटी के सिरहाने रहती ...बिना गीली पलक लिये,उस दौरान भी उन्हें किसी से कोई शिकायत नही रहती ,कभी भगवान् को नही कोसा ,कभी लोगो पर नही झुंझलाई ,कभी हालात ओर मुक्कद्दर जैसे शब्द सामने नही आये .. जिंदगी से रोज उसी शिद्दत से जूझना ओर पल पल के लिये लड़ना ,कहते है औरत अपने अधूरे सपने बेटी की आँखों में डाल देती है उन्हें उतने ही जतन ओर प्यार से सहेजती है ,पर टूटे सपनो को रोज सिलेवार लगाना उन्हें जोड़ने की जद्दोजहद मेरी जबान में उसे हिम्मत नही कहते ,हिम्मत से बड़ी ,उससे जुदा कोई चीज़ है .अपने किसी को तकलीफ मे देखना जितना दुखद है उससे भी कही ज्यादा मुश्किल है इस बात का अहसास की आप उसके लिए कुछ नही कर सकते .....फ़िर
एक रोज जिंदगी हार गयी....पहली बार वे टूट कर बिखरी ....दो सालो का सारा दर्द जैसे कही रुका हुआ था ...बस एक ही सवाल वो हमसे पूछती 'अगर मैंने AMPUTATION करवाया होता तो क्या मेरी बच्ची बच जाती ?

खाना खायोगे ?उनका ये सवाल मुझे वापस खींच लाता है ....भूख नही है ....पर हम दोनों मना नही कर पाते ...जानते है की खाना कही ओर भी बना है... पर उस आवाज में कुछ ऐसा है जिसे हम ना- उम्मीद नही कर सकते उनके चेहरे पे एक खुशी है पूरी परोसते वक़्त....इसलिए दो पूरी ओर ले लेता हूँ...दरवाजे की घंटी बजती है ,जिग्नेश है खाना देखकर गुस्सा होता है फ़िर ना जाने क्यों साथ बैठकर खाने लगता है दोनों अमेरिका जाने वाले है अगले महीने ..अपने बेटे के पास ,कुछ देर उसी की बातें चलती है
चलते वक़्त तस्वीर पर नजर जाती है....कृपा मुस्करा रही है.,अंकल का गला रुंध जाता है गले लगाकर कहते है ‘आते रहा करो ,अच्छा लगता है" ,मै अपनी आँखों को छुपा कर आंटी के पैर छूकर लिफ्ट की ओर बढ़ जाता हूँ...

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